पि छले दि नों बेंगलुरु में लिं गा यत मठा धी शों ने एक बैठक की और कुछ महत्वपूर्ण वि चा र सा झा कि ए। उग्र व रा जनैति क हिं दुत्व के रंग
में न रंगने के लि ए लिं गा यत लो गों को आवा हि त कि या और उसके ख़तरे बता ये।ये कई सा री नई और उग्र परंपरा एँ लिं गा यतों में आ गया
है और जि नका महा न संत ‘बसवण्णा ’ के वि चा रों से दूर-दूर तक को ई मेल नहीं हैं।
ज्ञा त हो कि सत्य धर्म संवा द के आदर्श महा पुरुषों में लिं गा यत संप्रदा य के संस्था पक भी हैं। उन्हों ने जो समता मूलक वि चा र दि ए वो आज भी वि श्वशां ति और मा नवहि त के लि ए प्रा संगि क है। सत्य धर्म संवा द के संयो जक स्वा मी रा घवेंद्र ने श्री शि वा चा र्य स्वा मी के बया न का समर्थन करते हैं,हैंभा रती य परम्परा वि भि न्नता एँ ली हुईं हैं और यहीं इनका सौं दर्य है।
ज्ञा त हो कि सत्य धर्म संवा द के आदर्श महा पुरुषों में लिं गा यत संप्रदा य के संस्था पक भी हैं। उन्हों ने जो समता मूलक वि चा र दि ए वो आज भी वि श्वशां ति और मा नवहि त के लि ए प्रा संगि क है। सत्य धर्म संवा द के संयो जक स्वा मी रा घवेंद्र ने श्री शि वा चा र्य स्वा मी के बया न का समर्थन करते हैं,हैंभा रती य परम्परा वि भि न्नता एँ ली हुईं हैं और यहीं इनका सौं दर्य है।
यं शैवा समुपा सते शि व इति ब्रह्मेति वेदा न्ति नो
बौ द्धा बुद्ध इति प्रमा णपटवः कर्तेति नैया यि का : ॥
अर्हन्नि त्यथ जैनशा सनरताः कर्मेति मी मां सकाः
सो ऽयं नो वि दधा तु वा ञ्छि तफलं त्रैलो क्यना थो हरि : ॥
बौ द्धा बुद्ध इति प्रमा णपटवः कर्तेति नैया यि का : ॥
अर्हन्नि त्यथ जैनशा सनरताः कर्मेति मी मां सकाः
सो ऽयं नो वि दधा तु वा ञ्छि तफलं त्रैलो क्यना थो हरि : ॥
अर्था त्, शैव शि व रूप में वेदा न्ती ब्रह्म स्वरूप बौ द्ध बुद्ध रूप में प्रमा णकुशल नैया यि क कर्ता स्वरूप , जैन अर्हन् रूप में
और मी मां सक कर्म रूप जि नकी उपा सना करते हैं, वे त्रैलो क्या धि पति श्री हरि हमें वा च्छि त फल प्रदा न करें । यहीं मूल है
भा रती य परम्परा और संस्कृति का इसलि ए सबकी मा न्यता ओं और परम्परा ओं का सम्मा न हो ना चा हि ए और कि सी पर
को ई ची ज़ थो पना भा रती यता के वि रुद्ध है।
सत्य धर्म संवा द के दक्षि ण भा रत प्रमुख को र्णेश्वर स्वा मी ने (लिं गा यत मठा धी श) कहा कि हिं सक और रा जनैति क हिं दुत्व की रा जनी ति दुर्भा ग्यपूर्ण है। यह भा रती य धर्मों के प्रगति शी लता के वि रुद्ध है। भा रत में वि भि न्न समुदा य और संप्रदा य के लो ग रहते हैं,सबकी अपनी अपनी स्वतंत्र परंपरा एँ हैं और उनकी अपनी संस्कृति है।ऐसे में कि सी एक मा न्यता और वि चा र को सब पर थो पना ग़लत है और हमा रे धा र्मि क-सा मा जि क सुधा रकों का अपमा न है। हम कि सी हिं सक और नफ़रती वि चा र को बढ़ने नहीं दे सकते।
सत्य धर्म संवा द के बा रे में: सत्य धर्म संवा द एक गैर-पक्षपा ती संगठन है जो धा र्मि क प्रा धि करणों के सा थ सम्बंध स्था पि त करता है ता कि दया और बंधुत्व का संदेश प्रचा रि त कि या जा सके। यह प्रया स, जि से दया लु हिं दू आचा र्यों ने शुरू कि या था , वि शेष रूप से इन परेशा न का लों में शां ति , प्रेम और सद्भा वना को बढ़ा वा देने का उद्देश्य रखता है।
सत्य धर्म संवा द के दक्षि ण भा रत प्रमुख को र्णेश्वर स्वा मी ने (लिं गा यत मठा धी श) कहा कि हिं सक और रा जनैति क हिं दुत्व की रा जनी ति दुर्भा ग्यपूर्ण है। यह भा रती य धर्मों के प्रगति शी लता के वि रुद्ध है। भा रत में वि भि न्न समुदा य और संप्रदा य के लो ग रहते हैं,सबकी अपनी अपनी स्वतंत्र परंपरा एँ हैं और उनकी अपनी संस्कृति है।ऐसे में कि सी एक मा न्यता और वि चा र को सब पर थो पना ग़लत है और हमा रे धा र्मि क-सा मा जि क सुधा रकों का अपमा न है। हम कि सी हिं सक और नफ़रती वि चा र को बढ़ने नहीं दे सकते।
सत्य धर्म संवा द के बा रे में: सत्य धर्म संवा द एक गैर-पक्षपा ती संगठन है जो धा र्मि क प्रा धि करणों के सा थ सम्बंध स्था पि त करता है ता कि दया और बंधुत्व का संदेश प्रचा रि त कि या जा सके। यह प्रया स, जि से दया लु हिं दू आचा र्यों ने शुरू कि या था , वि शेष रूप से इन परेशा न का लों में शां ति , प्रेम और सद्भा वना को बढ़ा वा देने का उद्देश्य रखता है।