World belongs to humanity, not this leader, that leader or that king or prince or religious leader. World belongs to humanity.
HIS HOLINESS the
Dalai Lama
श्री मद्भगवद्गीता में योगेश्वर कृष्ण ने पाँचवें अध्याय में ज्ञानी का लक्षण कहते हैं -

विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः।।
अर्थात् ज्ञान सम्पन्न व्यक्ति अभेदात्मक होता है, विद्या- विनययुक्त ब्राह्मण में और चाण्डाल में तथा गाय, हाथी एवं कुत्ते में भी समरूप देखते हैं। यही मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य है कि हम समरूपता को प्राप्त हों तब भी आये दिन धर्म के तथाकथित अधिकारी पुरुषों द्वारा ही देखा जा रहा कि मनुष्य से मनुष्य को बाँटने वाली बातें लगातार की जा रहीं हैं ऐसे में हमें अपने धर्म के मूल भाव(सत्य भाव) की ओर अग्रसर होना है।

हमारा संकल्प “जाति-पाँति पुछै नहीं कोई हरि का भजै सो हरि का होई” मध्यकाल के महान संत आचार्य स्वामी रामानंद के इस सूत्र को आत्मसात् कर जाति विहीन समाज बनाने का है। ईश्वर कभी किसी में भेद नहीं करता स्वामी रामानंद के ही शिष्य समरस समाज के स्वप्नद्रष्टा कहते हैं -

जाति-जाति में जाति है,जो केतन के पात।
रैदास मनुष न जुड़ सके , जब तक जाति न जात।।
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SUPERVISING MINISTER
LUIS SHAH
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